जाने क्‍या है सेरीब्रल पाल्‍सी जिसकी मरीज बनी थीं अनुष्‍का शर्मा

जाने क्‍या है सेरीब्रल पाल्‍सी जिसकी मरीज बनी थीं अनुष्‍का शर्मा

पिछले दिनों शाहरूख खान, अनुष्‍का शर्मा और कटरीना कैफ की फ‍िल्‍म जीरो धूमधड़ाके के साथ रिलीज हुई। हालांकि फ‍िल्‍म ने बॉक्‍स ऑफिस पर कोई खास कमाल नहीं दिखाया मगर इस फ‍िल्‍म ने एक खास बीमारी के बारे में लोगों के बीच उत्‍सुकता जरूर बढ़ा दी। दरअसल फ‍िल्‍म में अनुष्‍का शर्मा सेरीब्रल पाल्‍सी की मरीज बनी हैं। इस फ‍िल्‍म के रिलीज से पहले इस बीमारी के बारे में लोगों को खास जानकारी नहीं थी मगर इसके बाद लोगों में इस बीमारी को लेकर उत्‍सुकता बढ़ी है। आज हम सेहतराग के पाठकों को इस बीमारी से संबंधित सारी जानकारी दे रहे हैं।

डॉक्‍टर राजू वैश्‍य

सेरीब्रल पाल्‍सी मानसिक एवं शारीरिक विकलांगता की ऐसी स्थिति है जिसमें मांसपेशियों में अत्‍यधिक तनाव उत्‍पन्‍न होने के कारण मरीज रोजमर्रा के काम काज यहां तक कि अपनी नित्‍य क्रियाएं भी नहीं कर पाता है। ये पोलियो से एकदम उलटी बीमारी होती है। पोलियो में मांसपेशियों में अधिक जकड़न होने के कारण विकलांगता उत्‍पन्‍न होती है।

सेरीब्रल पाल्‍सी के कारण

सेरीब्रल पाल्‍सी होने का प्रमुख कारण समय पूर्व पैदाइश तथा जन्‍म के समय बच्‍चे का कम वजन होना है। समय से तीन माह पहले पैदा होने वाले बच्‍चों को यह बीमारी होने का आशंका बहुत अधिक होती है। जन्‍म के समय डेढ़ किलोग्राम से कम वजन वाले 25 फीसदी बच्‍चों को सेरीब्रल पाल्‍सी होने की आशंका होती है। जन्‍म के समय डेढ़ से ढाई किलोग्राम के बीच वजन वाले बच्‍चों को यह बीमारी होने की आशंका 10 प्रतिशत होती है। एक अनुमान के अनुसार हमारे देश में 20 लाख स्‍पास्टिक बच्‍चे हैं जिन्‍हें नित्‍य कर्म करने लायक बनाने के लिए ऑपरेशन की जरूरत है।

यह बीमारी बच्‍चे के मस्तिष्‍क के विकास के दौरान आघात लगने या व्‍यवधान आने के कारण होती है। इस व्‍यवधान या आघात के कारण मस्तिष्‍क को होनेवाली ऑक्‍सीजन एवं रक्‍त की आपूर्ति में कमी आ जाती है। गर्भधारण से लेकर प्रसव काल और जन्‍म के समय से लेकर आठ वर्ष की उम्र तक मस्तिष्‍क के विकास में आघात या व्‍यवधान आने पर यह बीमारी होने का खतरा रहता है।

सेरीब्रल पाल्‍सी के लक्षण

सेरीब्रल पाल्‍सी के शिकार बच्‍चे करवट बदलने, बैठने और चलने जैसी क्रियाएं देर से सीखते हैं। अगर बच्‍चा नौ माह तक नहीं बैठ पाए और 16 से 18 माह तक नहीं चल पाए तो उसे सेरीब्रल पाल्‍सी हो सकती है। इस रोग से ग्रस्‍त स्‍पास्टिक बच्‍चे के शरीर में असामान्‍य जकड़न आ जाती है। स्‍पास्टिक बच्‍चे टांगों का संतुलन सही रख पाने में असमर्थ होते हैं। उनके हाथ-पैर अकड़ जाते हैं जिन्‍हें सीधा करना न तो स्‍वयं बच्‍चे के लिए और न ही किसी अन्‍य व्‍यक्ति के लिए सरल होता है। बाहों और हाथों की अकड़न के कारण कुहनियां आगे की तरफ मुड़ जाती हैं, अंगूठे हथेली में अंदर आ जाते हैं और मुट्ठी भींचकर बंद हो जाती है। इस कारण इन बच्‍चों के लिए हाथो से काम करना, लिखना, खाना, कपड़े पहनना, किसी वस्‍तु को पकड़ना आदि कार्य या तो कठिन या असंभव होता है।

इसी बीमारी के मरीजों में धड़ के नीचे जकड़न के कारण कूल्‍हे के जोड़ों पर जांघ आगे की तरफ मुड़कर आपस में भिंचकर मिल जाती हैं, घुटने पीछे की तरफ मुड़ जाते हैं और एडि़यां जमीन से ऊंची उठ जाती हैं। रोगी मुश्किल से पैरों के अंगूठों और अंगुलियों पर सहाररा देने पर ही खड़ा हो पाता है। रोगी के खड़े होने पर कूल्‍हे पीछे निकल आते हैं और धड़ आगे की तरफ झुक जाता है। उसकी दोनों टांगें आपस में एक दूसरे को कैंची की तरह काटती हैं। पांवों की जकड़न के कारण मरीज के लिए सीधे चलना, रेंगना, पलटी खाना, घुटनों के बल चलना, खड़े होना मुश्किल अथवा असंभव हो जाता है। इनकी जांच करने पर उनकी मांसपेशियों में कमजोरी जकड़न तथा असंतुलन पाए जाते हैं। इस बीमारी का बच्‍चों की बुद्धि (आई.क्‍यू.) पर भी खराब असर पड़ता है। ज्‍यादातर मरीजों की मानसिक एवं बौद्धिक क्षमता भी कम हो जाती है और यह प्राय: स्‍थायी होती है। कुछ रोगियों का मुंह एक तरफ को टेढ़ा हो जाता है, मुंह थोड़ा खुला रहता है तथा उससे लार टपकती रहती है। इस बीमारी से ग्रस्‍त बच्‍चों की दृष्टि, श्रवण तथा बोलने की क्षमताओं में असामान्‍यता पाई जाती है। करीब 75 फीसदी रोगियों में दृष्टि तथा श्रवण दोष पाए जाते हैं, 30 फीसदी रोगियों को दौरे पड़ते हैं और लगभग 75 फीसदी रोगियों में मानसिक अपंगता होती है।

सेरीब्रल पाल्‍सी का उपचार

स्‍पास्टिक बच्‍चे के छह माह के हो जाने के बाद यथा संभव जल्‍द से जल्‍द उपचार शुरू कर देने पर बहुत लाभ होता है। बच्‍चों की सुषुप्‍त शारीरिक एवं मानसिक शक्ति को जाग्रत कर उसे विकसित करने का यही उच‍ित समय होता है। इस उम्र में फ‍िजियोथेरेपी तथा स्प्लिंट का अत्‍यंत महत्‍व होता है। इनकी मदद से जकड़न के कारण जोड़ों को टेढ़े मेढ़े होने से रोका जा सकता है, जिससे भविष्‍य में रोगी को सामान्‍य जीवन जीने में काफी सहायता मिलती है।

शल्‍य चि‍कित्‍सा

शल्‍य च‍िकित्‍सा के लिए रोगी की आयु चार वर्ष से अधिक होना आवश्‍यक है। यह ऑपरेशन जकड़न दूर करने तथा इससे उत्‍पन्‍न समस्‍या को ठीक करने के लिए किया जाता है। शल्‍य चिक‍ित्‍साा से पूर्व रोगी के परिवारजनों को रोग तथा शल्‍य च‍िकित्‍सा और उसके बाद व्‍यायाम से होनेवाले संपूर्ण लाभ की वास्‍तविकता से पूर्ण रूप से अवगत होना आवश्‍यक है।

सेरीब्रल पाल्‍सी के मरीजों को आत्‍मनिर्भर बनाने के लिए की जानेवाली शल्‍य च‍िकित्‍सा के तहत तंत्रिका तंत्र और मांसपेशियों तथा अस्थियों की सर्जरी की जाती है। इन ऑपरेशनों के बाद जकड़न में काफी कमी आ जाती है और बच्‍चों की स्थिति में काफी सुधार होता है लेकिन बच्‍चों को अपने नित्‍यकर्म करने लायक बनाने के लिए उन्‍हें फ‍िजियोथेरेपी की जरूरत होती है। ऑपरेशन तथा फ‍िजियोथेरेपी से मरीज को चलने-फ‍िरने लायक होने में तीन माह से दो वर्ष का समय लग सकता है।

अज्ञानता तथा बहकावे के कारण मरीज ऑपरेशन कराए बगैर लंबे समय तक फ‍िजियोथेरेपी कराते रहते हैं जिसके कारण मरीज की स्थिति दिनोदिन गंभीर होती जाती है। अगर मरीज समय पर सर्जरी करा ले तो उसे सामान्‍य जीवन जीने लायक बनाया जा सकता है।

(प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित पुस्‍तक फैमिली हेल्‍थ गाइड से साभार)

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